दिवाली, जिसे दीपावली भी कहते हैं, “प्रकाशों का त्योहार” है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है।

परंतु केवल “दीप जलाना, पटाखे फोड़ना, मिठाई बाँटना” ही नहीं — दिवाली का वास्तविक महत्व मन, भाव और कर्म से जुड़ा है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे — दिवाली का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व, क्या करें-क्या न करें, भूलकर भी न करने योग्य चीजें, और दिवाली को भक्ति दृष्टि से कैसे मनाएँ — ताकि यह सिर्फ बाहरी उत्सव न बने, बल्कि आत्मा के लिए एक अनुभव हो।
1. दिवाली का महत्व — पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि
1.1 पौराणिक कथाएँ और धार्मिक महत्व
दिवाली के पीछे अनेक कथाएँ हैं, जो क्षेत्र और मान्यता अनुसार भिन्न हो सकती हैं:
उत्तर भारत में माना जाता है कि दिवाली राम, सीता और लक्ष्मण का अयोध्या लौटना था, जब उन्होंने 14 वर्ष का वनवास और युद्ध के बाद विजय प्राप्त की थी। तब अयोध्यावासी दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं।
दक्षिण भारत में दिवाली को कृष्ण द्वारा नरकासुर वध का दिन माना जाता है।
जैन धर्म में दिवाली का महत्व इसलिए है क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ था।
सिख धर्म में यह गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई का दिन माना जाता है।
इन कथाओं के अलावा, दिवाली का गहरा उपदेश है — अज्ञानता का नाश, मन की अशुद्धियों का समाधान और अन्तर-ज्योति को जगाना। जैसा कि साधगुरु जी कहते हैं — “दिवाली महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक त्योहार है जो क्लियरिटी (स्पष्टता) को समर्पित है”
1.2 सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व
संस्कृति और परंपरा
दिवाली हमारे लोक रीति-रिवाज़, दिवाली गीत, दीये, रंगोली आदि को जीवंत रखती है।
सामाजिक एकता
इस दिन लोग एक-दूसरे को मिठाइयां बांटते हैं, मिलते हैं, पुराने विवाद भूल जाते हैं, भाईचारे का संदेश फैलते हैं।
आर्थिक गतिविधि
दिवाली के समय बाजारों में खरीदारी, उपहार, सजावट का काम बढ़ता है। व्यापार बढ़ता है।
पर्यावरणीय चेतना
आजकल लोग “इको-दीवाली” की ओर अग्रसर हो रहे हैं — मिट्टी के दीए, जैव रंग, कम ध्वनि पटाखे आदि।
स्वास्थ्य एवं प्रदूषण
पटाखों से वातावरण में PM2.5 और विषाक्त कण बढ़ जाते हैं। एक अध्ययन में दिल्ली में दिवाली के फ़टाखों के समय पीएम 2.5 स्तर कई गुना बढ़ गया था।
इसलिए यह आवश्यक है कि हम दिवाली को सजग, जागरूक और अर्थपूर्ण रूप से मनाएँ।
2. दिवाली मनाने की पाँच मुख्य दिशाएँ
दिवाली लगभग पाँच दिनों तक मनाई जाती है, और प्रत्येक दिन अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता रखता है।
| पहला दिन धनतेरस इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, नए बर्तन, सोना, चांदी आदि खरीदते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए तैयारी करते हैं। |
| दूसरा दिन छोटी दिवाली / नरक चतुर्दशी यह दिन प्रभु कृष्ण द्वारा नरकासुर वध की स्मृति में मनाया जाता है। सुबह स्नान और दीपक जलाना। |
| तीसरा दिन मुख्य दिवाली / लक्ष्मी पूजा इस दिन गृहशोभा, पूजा, भजन-कीर्तन, दीप जलाना, मिठाई उत्सव होता है। |
| चौथा दिन गोवर्धन पूजा / अन्नकूट / नव वर्ष कुछ जगहों पर गोपूजन या अन्नकूट पूजा होती है, व्यापारियों का नया लेखा-जोखा शुरू होता है। |
यह समय केवल खुशियाँ बाँटने का नहीं, बल्कि आत्म चिंतन, शुद्धि, सेवा और भक्ति को आगे बढ़ाने का अवसर भी है।
3. दिवाली में क्या करें — अर्थात आदर्श व्यवहार, उपाय और निर्देश
नीचे कुछ महत्वपूर्ण दिशाएँ हैं — दिवाली को पूर्णता और शुद्धता से मनाने के लिए:
3.1 घर और मन की तैयारी
- सफाई और सजावट
अपने घर, आँगन, प्रांगण को अच्छे से साफ करें। दीवारों को हल्का रंग दें, झाड़ू लगाएँ। घर में कोई अनावश्यक अव्यवस्था न हो। - पूजा स्थल की मरम्मत
पूजा स्थान को व्यवस्थित रखें, फूल, दीप, आरती पात्र आदि तैयार रखें। - इच्छित मन बनाना
पूजा करते समय मन की प्रगति की इच्छा करें — कि केवल दिखावा न हो, बल्कि हृदय की शुद्धि हो।
3.2 पूजा और अनुष्ठान
- लक्ष्मी और गणेश पूजा
दिवाली की रात मुख्य रूप से माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। - दीपों का प्रयोग
मिट्टी के दीए (ग्लेज़ या पॉलिथीन नहीं) लगाना उत्तम माना जाता है। ये पवित्रता और सादगी का प्रतीक हैं। → दीपों से अज्ञानता और अँधेरे का नाश होता है। - मंत्र जाप और भजन / कीर्तन
लक्ष्मी मंत्र, गणेश मंत्र, दीपावली भजन-कीर्तन। - दान और सेवा
इस दिन गरीबों को भोजन देना, वस्त्र देना, मंदिर या धर्मशालाओं में सेवा करना बहुत पुण्यदायक माना जाता है। - नए लेख (नव लेखा) प्रारंभ
कुछ व्यवसायी दिवाली के दिन नया लेखा-पुस्तक खोलते हैं, इसे शुभ माना जाता है। - प्रोसेस करना समय
पूजा के समय शुभ मुहूर्त देखें।
3.3 आहार, व्रत और संयम
- शुद्ध भोजन
सात्विक भोजन करें, तली-भुनी वस्तुओं का सीमित उपयोग करें। - उपवास
यदि उपवास करना हो, तो हल्का व्रत ही लें, स्वास्थ्य का ध्यान रखें। - मधुर वितरण
मिठाइयाँ, फलों का वितरण करें। - अत्यधिक भोजन से बचें
पेट भरने से अधिक भोजन स्वास्थ्य को असर पहुंचा सकता है।
3.4 संबंध, मिलन और संवाद
- पुराने विवाद भूल जाना
दिवाली का अवसर है — मन का बोझ हल्का करें, क्षमाएं करें। - रिश्तों को सुदृढ़ करना
भाई-बहन, माता-पिता, मित्रों से समय बिताना, संवाद करना। - शुभ संदेश और उपहार
छोटे उपहार, शुभकामनाएँ, ई-कार्ड आदि।
3.5 पर्यावरण एवं सुरक्षा
- इको-दीवाली (Eco-Diwali)
– मिट्टी के दीए, जैविक / प्राकृतिक रंगों का उपयोग
– कम ध्वनि पटाखे, कम धुआँ पटाखे
– LED लाइट्स की बजाय पारंपरिक दीप
– सजावट में अधिक फूल, ताजे पत्ते, कागज आधारित सामग्री - सुरक्षा
– दीयों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ उड़ने वाले पर्दे, कपड़े न हो
– छोटे बच्चों और वृद्धों की सुरक्षा
– पटाखे उपयोग करते समय दूरी रखें, प्राथमिक चिकित्सा तैयार रखें
3.6 आंतरिक और अनुपम अनुभव बढ़ाने हेतु
- ध्यान और आत्मनिरीक्षण
दिवाली की रात ध्यान करें, अपने अंदर के अँधेरे को पहचानें और छूने दें। - मौन समय
एक-आधा घंटा मौन रहें, भीतर की आवाज सुनें। - प्रकृति के करीब जाएँ
दीपों को पानी या नदी में बहाना (यदि संभव हो), घाट पर पूजा करना। - धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन
दिवाली की कथाएँ, पुराण, उपनिषद आदि पढ़ें और समझें।
4. दिवाली में क्या न करें / भूलकर भी न करें
हर त्योहार के साथ कुछ नियत सावधानियाँ होती हैं। दिवाली के अवसर पर निम्नलिखित बातें बिल्कुल न करें:
4.1 दिखावा और घमंड
- पूजा और उत्सव को दिखावे का माध्यम न बनायें।
- सोशल मीडिया पर “मेरी दिवाली सबसे बड़ी” जैसे प्रतिस्पर्धी पोस्ट न करें।
- अधिक खर्च करके दिखावा करना न करें — दिवाली एक आध्यात्मिक अवसर है, न कि प्रदर्शन।
4.2 अति उत्साह और अतिरंजना
- उन्मत्त ध्वनि और तेज़ धमाके — यह आसपास के लोगों एवं जानवरों को कष्ट देते हैं।
- अत्यधिक भोजन — जिससे स्वास्थ्य बिगड़े।
- आध्यात्मिक विधियों को अधूरा छोड़ देना — जैसे पूजा अधूरी करना, मंत्र बिना मन से करना।
4.3 अचाहे व्यवहार
- विवाद, झगड़ा, गाली-गलौज — ये दिवाली की शुभता को नष्ट कर देते हैं।
- अपव्यय — ऐसी चीजों पर खर्च करना जो आवश्यक नहीं है, जैसे बहुत अधिक सजावट, झूठे उपहार।
- कूड़ा फैलाना — दीयों और सजावट के बाद सफाई न करना।
- अनचाही सामग्री का उपयोग — प्लास्टिक लाइट्स, रासायनिक रंग, पॉलिथीन सजावट आदि।
4.4 स्वास्थ्य और सुरक्षा नज़रअंदाज़ करना
- बचाव न करना — बच्चे, पालतू जानवर, वृद्धों की सुरक्षा न लेना।
- दीयों को असुरक्षित जगह पर लगाना — अत्यंत ध्यान रखें कि दीया गिर न जाए।
- पटाखों को हाथ में पकड़ कर फोड़ना — यह जिवित रहने वालों के लिए खतरनाक हो सकता है।
- रात में असावधानी — घर की दरवाली बंद न रखना, चोर-चपेट आदि जोखिम।
5. दिवाली को भक्ति दृष्टि से कैसे मनाएँ
यह सेक्शन विशेष रूप से BhaktiPlus पाठकों के लिए — ताकि दिवाली केवल उत्सव न रहे, बल्कि भक्ति का अनुभव बने:
5.1 “प्रकाश” को आत्मा में जलाना
दिवाली की ज्वाला सिर्फ घरों की दीवारों पर नहीं, हमारे हृदय में जली होनी चाहिए। साधगुरु कहते हैं — “दिवाली का असली उद्देश्य है अज्ञानता का नाश करके भीतर के प्रकाश को जगाना।”
जब आप दीया जलाएँ, तो न केवल अँधेरे को बाहर करें, बल्कि अपने मन की तमस (अज्ञानता, ईर्ष्या, द्वेष) को भी जला दें।
5.2 मंत्र, भजन और ध्यान
- दिवाली मंत्र जैसे “ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः” आदि का जाप करें।
- भजन-कीर्तन में सम्मिलित हों — पारिवारिक या सार्वजनिक।
- ध्यान करें — 10–15 मिनट ध्यान यदि संभव हो तो।
5.3 आत्मदर्शन और संकल्प
- इस दिवाली पर विचार करें — इस वर्ष आपने क्या किया, कौन सी बुरी आदत छोड़नी है, कहाँ सुधार करना है।
- नए साल प्रारंभ की तरह, एक संकल्प लें — भक्ति, सदाचार, सही परिवर्तन का।
5.4 सेवा और दान
- इस दिन दान करना विशेष पुण्य का माना जाता है।
- भोजन वितरण, वस्त्र, शिक्षा सहायता — अपनी क्षमता अनुसार सेवा करें।
- “छोटी सेवा, बड़ी भक्ति” — किसी को मुस्कुरा दें, समय दें।
5.5 प्रकृति और पशु-पक्षी के प्रति करूणा
- दिवाली के दिन जानवरों के प्रति संवेदनशील रहें — पटाखों के तेज़ आवाज़ उन्हें डराते हैं।
- स्वच्छ हवा और वातावरण के लिए जिम्मेदारी लें।
- दीयों को जलाकर उन्हें जलापूर्ति क्षेत्रों (नदियों, तालाबों) में सुरक्षित रूप से बहाएँ (यदि स्थानीय परंपरा हो)।
उदाहरण वाक्यांश शामिल करें:
- “दिवाली क्यों महत्वपूर्ण है — हिंदू धर्म में महत्व”
- “दिवाली में भूलकर भी न करें ये काम”
- “दिवाली को भक्ति दृष्टि से कैसे मनाएँ”
6.2 शीर्षक और मेटा विवरण
शीर्षक उदाहरण:
- दिवाली क्यों महत्वपूर्ण है — क्या करें और क्या न करें (भक्ति दृष्टि से)
- दिवाली का महत्व एवं भूलकर भी न करें ये बातें
7. निष्कर्ष
दिवाली केवल एक त्योहार नहीं — यह प्रकाश और अज्ञानता के बीच संघर्ष का प्रतीक है; यह मन की शुद्धि, आत्मा की जाग्रति और भक्ति की यात्रा है।
जब हम दिवाली में साधारणता, उदारता, पर्यावरण-सजगता, स्वास्थ्य और आंतरिक जीवन को ध्यान में रखकर व्यवहार करें, तब यह पर्व वाकई हमारी आत्मा को आलोकित कर देता है।
इस दिवाली पर मैं आपसे अनुग्रह करता हूँ:
- भूलकर भी न करें वो काम जो दूसरों को कष्ट पहुँचायें।
- पूजा करते समय दिखावा और घमंड न हो — मन की शुद्धि हो।
- पटाखों का अति उपयोग न करें — पर्यावरण और स्वास्थ्य का ख्याल रखें।
- दान, सेवा और प्रेम को अपनाएँ — यही भक्ति का सर्वोच्च भाव है।
- अज्ञानता के अँधेरे को जला कर, अपने भीतर का प्रकाश जगाएँ।






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