चंद्रमा और सूर्य से जुड़ी पौराणिक कथाएँ – क्यों होता है ग्रहण?

चंद्रमा और सूर्य से जुड़ी पौराणिक कथाएँ – क्यों होता है ग्रहण?

पौराणिक कथाओं में सूर्य और चंद्रमा का महत्व

भारतीय पौराणिक कथाओं में चंद्रमा और सूर्य का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हें केवल आकाशीय ग्रह नहीं, बल्कि देवता के रूप में पूजा जाता है। सूर्य को ऊर्जा, प्रकाश और जीवन का प्रतीक माना गया है जबकि चंद्रमा को मन, शांति और सौंदर्य से जोड़ा गया है। वेदों में सूर्य को “सविता” और चंद्रमा को “सोम” कहा गया है। इन दोनों की उपासना न केवल धार्मिक रीति-रिवाज़ों में की जाती है, बल्कि जीवनशैली, स्वास्थ्य और त्योहारों में भी इनकी गहरी छाप देखने को मिलती है।

चंद्रमा और सूर्य के बीच संबंध केवल खगोलीय नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी है। ज्योतिष शास्त्र में भी इन दोनों ग्रहों की स्थिति का मनुष्य के जीवन पर सीधा प्रभाव माना जाता है। परंतु जब इन दो प्रमुख ग्रहों के बीच कोई विचलन होता है – जैसे कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण – तो उसे केवल खगोलीय घटना नहीं बल्कि दैवीय संदेश भी माना जाता है। इस संदर्भ में हमारे शास्त्रों और पुराणों में कई रोचक और रहस्यमयी कथाएं प्रचलित हैं।

ग्रहण का पौराणिक कारण – चंद्रमा और सूर्य की कथा

“ग्रहण” शब्द सुनते ही हमारे मन में एक रहस्यमयी कल्पना उभरती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगने के पीछे राहु और केतु का हाथ होता है। यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है।

जब देवता और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत पीने की लालसा में एक असुर – स्वर्भानु – ने देवताओं का वेश धारण कर अमृत पी लिया। परंतु चंद्रमा और सूर्य ने यह धोखा पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। विष्णु ने तत्क्षण सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया।

लेकिन चूँकि उसने अमृत पी लिया था, इसलिए उसका सिर (राहु) और धड़ (केतु) अमर हो गए। तभी से चंद्रमा और सूर्य से शत्रुता रखने लगे। ऐसी मान्यता है कि जब-जब सूर्य या चंद्रमा की राहु या केतु से भेंट होती है, तब ग्रहण लगता है।

इस कथा के माध्यम से भारतीय संस्कृति में यह समझाया गया कि कैसे नकारात्मक शक्तियाँ (राहु-केतु) ज्ञान और चेतना के प्रतीकों (सूर्य-चंद्रमा) को ढकने का प्रयास करती हैं।

वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण – मुख्य बिंदु

 ग्रहण का वैज्ञानिक कारण:

  • सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है।
  • चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है।

पौराणिक कारण:

  • राहु और केतु सूर्य-चंद्रमा को निगलने का प्रयास करते हैं, जिससे अस्थायी ग्रहण होता है।

 धार्मिक मान्यता:

  • ग्रहण को अशुभ समय माना जाता है। पूजा, भोजन आदि से परहेज किया जाता है।

ग्रहण और ज्योतिष:

  • ग्रहण के दौरान किए गए मंत्र जाप और ध्यान का प्रभाव अधिक शक्तिशाली माना जाता है।

ग्रहण के दौरान सावधानियाँ:

  • गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है।
  • खाना न पकाएं, जल को ढक कर रखें, और ग्रहण के समय स्नान और दान करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

निष्कर्ष

चंद्रमा और सूर्य केवल ब्रह्मांडीय पिंड नहीं, हमारे जीवन, संस्कृति और आस्था का हिस्सा हैं। चाहे वह वैज्ञानिक तथ्य हो या पौराणिक कथा – दोनों ही दृष्टिकोणों से ग्रहण एक गहरा संदेश देता है: हर अंधकार के बाद उजाला आता है। ग्रहण भले ही अस्थायी हो, परंतु उसका प्रभाव हमें आत्मचिंतन और संयम की ओर प्रेरित करता है।

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