हमारे जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटता है जिसे हम “नसीब” या “भाग्य” कहकर टाल देते हैं। लेकिन सनातन धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है, वह हमारे कर्म का ही फल होता है।
आज हम इस ब्लॉग में विस्तार से समझेंगे कर्म क्या होता है, यह कैसे काम करता है, और क्यों कहा गया है – “जैसा करोगे, वैसा भरोगे।”
🌱 कर्म क्या होता है?
“कर्म” संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – “क्रिया” या “कार्य”। लेकिन सनातन धर्म में कर्म केवल किसी कार्य को करना नहीं है, बल्कि हर वह सोच, वाणी और व्यवहार भी कर्म कहलाता है जिसका परिणाम हमें भविष्य में भुगतना पड़ता है।
🔸 भगवद्गीता (अध्याय 3) में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“कर्म ही इस संसार का आधार है, कोई भी क्षण ऐसा नहीं जिसमें मनुष्य कर्म न कर रहा हो।”
🕉️ कर्म के प्रकार
सनातन दर्शन में कर्म को तीन मुख्य प्रकारों में बांटा गया है:
1. संचित कर्म
ये वे कर्म हैं जो हमने पिछले जन्मों में किए और जिनका फल हमें अभी तक नहीं मिला। यह हमारे जीवन की कुल जमा पूंजी की तरह होते हैं।
2. प्रारब्ध कर्म
ये वे कर्म हैं जिनका फल हम इस जीवन में भोग रहे हैं – जैसे जन्म, परिवार, स्वास्थ्य, आदि।
3. क्रियमाण कर्म
ये वे कर्म हैं जो हम वर्तमान में कर रहे हैं। इनका फल हमें इसी जीवन या अगले जीवन में मिलेगा। यही कर्म हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं।
🔄 कर्म का सिद्धांत: कारण और परिणाम
“हर कर्म का फल होता है” – यह सनातन धर्म का अटल नियम है।
जिस प्रकार बीज बोने पर पौधा उगता है, वैसे ही हर कर्म का भी फल निश्चित होता है। चाहे वो अच्छा हो या बुरा।
- अगर हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें सहायता मिलती है।
- अगर हम किसी का बुरा करते हैं, तो वही हमारे पास लौटकर आता है।
इसीलिए इसे ही “कर्म का सिद्धांत” कहा गया है –
👉 “जैसा करोगे, वैसा भरोगे।”
🌼 अच्छे और बुरे कर्म का फर्क
| कर्म का प्रकार | उदाहरण | फल |
|---|---|---|
| सत्कर्म (अच्छे कर्म) | दान, सेवा, सत्य बोलना, अहिंसा | शांति, पुण्य, सुख |
| दुष्कर्म (बुरे कर्म) | झूठ, चोरी, हिंसा, दूसरों को दुःख देना | दुख, पाप, मानसिक अशांति |
🔍 क्यों जरूरी है कर्म की शुद्धता?
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में लोग यह सोचते हैं कि सिर्फ पैसे कमा लेने से सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अगर वह पैसा धोखा, छल या हिंसा से कमाया गया है, तो वह पाप की श्रेणी में आता है और भविष्य में दुखद परिणाम देता है।
कर्म केवल बाहरी कार्य नहीं है, बल्कि आपकी भावना भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यदि आप सेवा कर रहे हैं लेकिन मन में घमंड है, तो वह भी दूषित कर्म बन जाता है।
🧘♂️ कर्म और मोक्ष का संबंध
सनातन धर्म का अंतिम लक्ष्य है मोक्ष – जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। लेकिन जब तक हमारे कर्म अधूरे या दोषपूर्ण हैं, तब तक आत्मा मुक्त नहीं हो सकती।
इसलिए:
- अच्छे कर्म करना,
- पुराने पापों का प्रायश्चित करना,
- और निष्काम भाव से सेवा करना
— यही मोक्ष की ओर पहला कदम है।
📿 भगवद्गीता में कर्म का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
अर्थात – “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता मत करो।”
इसका अर्थ यह नहीं कि फल नहीं मिलेगा, बल्कि यह कि फल की चिंता छोड़कर पूर्ण समर्पण भाव से कर्म करो। यही निष्काम कर्म कहलाता है।
🧭 जीवन में सही कर्म की दिशा कैसे चुनें?
- हर कार्य करने से पहले सोचें – क्या यह किसी को नुकसान पहुंचाएगा?
- अपने मन को शांत रखें – गुस्से में किया कर्म अकसर गलत होता है।
- कर्म करें लेकिन फल की अपेक्षा न रखें।
- नित्य प्रार्थना और ध्यान करें – यह कर्म को शुद्ध करता है।
✨ निष्कर्ष
“कर्म क्या होता है?” यह सवाल केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन की दिशा तय करने वाला प्रश्न है।
हर मनुष्य को समझना चाहिए कि उसके आज के कर्म ही उसके आने वाले कल को गढ़ते हैं।
इसलिए चलिए हम सब मिलकर यह संकल्प लें:
👉 “हर कर्म में सच्चाई, सेवा और समर्पण हो – तभी जीवन सफल हो सकता है।”
🌿 हर-हर महादेव!
🌼 ॐ तत्सत





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